अंजली सिंह
2 दिसम्बर की वो मनहूस रात जो भारत के लिए एक भयंकर और डरावना इतिहास बनकर रह गई। जिसको सुनकर आज भी लोगों की रूह कांप उठती है। जिसका डर भोपाल के लोगों के दिलों में आज भी एक डरावने साये की तरह घर किये हुए है। जिसने न जाने कितने घरों को उजाड़ दिया, न जाने कितने मासूम मौत के घाट उतर गए।
आपको बता दें कि 2 दिसम्बर 1984 को भोपाल गैस त्रासदी घटना घटी थी। जिसमें सरकारी आंकड़ों के अनुसार 3787 लोगों की मौत हो गई थी। लेकिन कई एनजीओ का कहना है कि इस दुर्घटना में 15-20 हजार लोगों की मौत हुई। लगभग 3900 लोग बुरी तरह से घायल व अपंग हो गए थे। घटना के बाद दो सप्ताह के अंदर लगभग 8000 लोगों की मौत हुई थी, और गैस रिसाव की वजह से लाखों की संख्या में लोग प्रभावित हुए थे। लाखों की संख्या में पशुओं की मौत हुई थी। इस दुर्घटना के शिकार सबसे ज्यादा झुग्गियों में रहने वाले वे गरीब लोग थे जो अलग-अलग राज्यों से आये मेहनत मजदूरी करके अपनी जीविका चला रहे थे।
दरअसल, दिसम्बर की उस रात भोपाल में यूनियन कार्बाइड प्लांट से मिथाइल आइसोसाइनाइट गैस के रिसाव के कारण गैस के बादल बन गए। गैस के बादल हवा के झोकों के साथ लोगों को मौत की नींद सुलाते चले गए। रात को जब सभी लोग सो रहे थे, गैस रिसाव के कारण लोगों को सांस लेने में दिक्कत हुई, आंखों में जलन हुई लेकिन किसी को कुछ पता नहीं चला, गैस का असर लोगों पर इतना भयानक हुआ कि लोग मौत की नींद सोने को मजबूर हो गए और उन्हें पता तक न चल सका। बता दें कि टैंक नंबर 610 में गैस में पानी मिलने के कारण उसमें दबाव बढ़ गया और टैंक फट गया। पानी मिलने के कारण तापमान 200 डिग्री पहुँच गया। जिससे टैंक का मुंह खुल गया और 40 टन गैस बाहर निकल गई। जिसकी वजह से इतना बड़ा हादसा हुआ।
यूनियन कार्बाइड प्रमुख वारेन एंडरसन को घटना के दौरान मध्यप्रदेश पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था, लेकिन मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने एंडरसन की इंडिया से भागने में मदद की थी। लेकिन कुछ लोगों का कहना ये भी है कि एंडरसन को इंडिया से भगाने में राजीव गांधी का हाथ था। हालांकि घायलों ने उसे सजा दिलाने की सरकार से अपील भी की थी लेकिन सरकार उसे अमेरिका से लाने में असमर्थ रही। अंततः 2014 में वारेन एंडरसन की मौत हो गई।
इस घटना को घटे 34 साल हो गए लेकिन वहाँ आज भी गैस का असर है जिसकी वजह से अभी भी वहाँ के लोग कैंसर, अंधेपन, अपंगता जैसी बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। सरकार की लाखों कोशिशों के बावजूद भी बीमारी थमने का नाम नहीं ले रही है।
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