श्रद्धा और सम्मान का प्रतीक है भाई दूज


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भानु प्रताप सिंह।। 

हमारा देश त्यौहारों का देश है। देश के कोने-कोने में अलग- अलग धर्म के लोग अनेकों त्यौहार मनाते हैं। जो हमारी भारतीय संस्कृति को दर्शाते हैं। जैसे कि दीपावली,  होली,  दशहरा,  ईद। लेकिन कुछ ऐसे भी पर्व हैं जिनमें लोग दूसरों की मंगलकामना के लिए व्रत-पूजा आदि करते हैं। और आज हम आपको बताएंगे ऐसे ही एक पर्व के बारे में, और वो है भाई-दूज।
ऐसा माना जाता है कि भाई दूज भाई-बहन के पवित्र प्यार का प्रतीक है। और ये बिल्कुल सच है। ये पर्व बड़ी श्रद्धा और परस्पर प्रेम के साथ मनाया जाता है।

कब मनाते हैं भाई दूज-

भाई दूज का पर्व दीपावली के तीसरे दिन यानि कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक यह त्यौहार अक्तूबर या नबम्बर महीने में पड़ता है।  इस पर्व के माध्यम से लोगों के बीच अपनों के प्रति सम्मान और अपने व्यस्तता भरे जीवन से अपनों के लिए समय अवश्य निकालने का संदेश पहुँचता है।

कैसे मनाते हैं भाई दूज –
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इस पवित्र पर्व पर बहनें अपने भाइयों की दीर्घायु व सुख समृद्धि की कामना करती हैं। इस दिन बहनें घर में गोबर से भाई दूज परिवार बनाकर उसकी पूजा अर्चना करती हैं। इसके बाद आरती की थाल सजाकर भाइयों को तिलक करके उन्हें मिठाई और भोजन खिलाती हैं। और भाइयों को प्रेम भरी स्वादिष्ट मिठाइयाँ भेंट करती हैं । इसके बदले भाईयों द्वारा भी अपने बहनों को उपहार स्वरुप कुछ शगुन दिया जाता है। विवाहिता बहनें इस दिन भाइयों को भोजन के लिए अपने घर पर आमंत्रित करती हैं। 
भाई दूज से जुड़ी कई अलग - अलग मान्यताओं के कारण इसे अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग तरह ये मनाया जाता है।

क्यों मनाते हैं भाई दूज–

वैसे तो भाई दूज का पर्व मनाने की कई मान्यताएँ मानी जाती हैं। लेकिन सबसे अधिक प्रचलित माऩ्यता के अनुसार ऐसा माना जाता है कि इस पर्व की शुरुआत सूर्य परिवार से हुई थी। हिन्दू धर्म में एक पौराणिक मान्यता के मुताबिक भाई दूज की कथा का वर्णन कुछ इस प्रकार किया जाता है –
कहा जाता है कि संसार को अंधेरे से प्रकाशमय करने वाले साक्षात् देव सूर्यदेव की  पत्नी संध्या की कोख से मृत्यु के देवता धर्मराज यम और यमी (यमुना) का जन्म हुआ। दोनों भाई बहनों में अत्यंत गहरा प्रेम था। यमी ने स्नेहवश अपने ज्येष्ठ भ्राता यम को कई बार भोजन के लिए आमंत्रित किया। परंतु धर्मराज यम व्यस्तता के कारण हर बार बहन यमी के आमंत्रण को टाल देते थे। एक दिन अचानक कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष द्वितीया ( द्विज या दूज) को यमुना ने अपने बड़े भाई धर्मराज यम को अपने द्वार पर खड़ा देखा।  यमी की खुशी का ठिकाना न रहा। उन्होंने प्रसन्नचित्त हो भाई का स्वागत-सत्कार कर बड़े प्रेम से भोजन कराया। इससे प्रसन्न होकर यमराज ने बहन से वर मांगने को कहा। तब बहन ने भाई से कहा कि आप प्रतिवर्ष इस दिन मेरे यहां भोजन करने आया करेंगे तथा इस दिन जो बहन अपने भाई को टीका करके भोजन खिलाए उसे आपका भय न रहे।  धर्मराज यम 'तथास्तु' कहकर यमपुरी चले गए।  तभी से भाई दूज का पर्व भाई-बहनों के पवित्र रिश्ते का प्रतीक माना जाता है।  साथ ही एक यह भी मान्यता है कि  इस दिन जो भाई यमुना में स्नान करके पूरी श्रद्धा से बहनों के आतिथ्य को स्वीकार करते हैं उन्हें तथा उनकी बहन को यम का भय नहीं रहता।


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